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Category: Poetry

हे जग जननी देवी तूँ माँ कहलाती है

निश्छल निष्कपट
झपट के लिपट लिपट
मचलता स्नेह अमिट
हर पल निकट निकट
हे जन्म दायिनी भयहारिणी सुखदायनी मां
ना आंखों से ओझल ना एक आह सुन पाती है
हे जग जननी देवी तूँ माँ कहलाती है


वह मचलाता का बचपन
जब आंखें थी चमचम
संघ संघ तेरा मन
और
पैजनिया छम छम
गिरत परत फिर लिपट लिपट
फिर गिरत गिरत तू उठाती मां
लगत कंठ फिर चूमत चूमत
झपट के दिल से लगाती माँ

ना हाथों से छोड़त ना तनिक दूर रह पाती है
हे जग जननी देवी तूँ माँ कहलाती है


मेरे दुख के एक एक आंसू को पिया है तुमने
मेरे खातिर पेट काटकर जीया है तुमने
मेरी हर इच्छा को स्नेहमई सीने से लगाने वाली माँ
परमेश्वरी परमात्मा को भी दूध पिलाने वाली माँ
ना आंखों से ओझल ना एक आह सुन  पाती है
हे जग जननी देवी तूँ माँ कहलाती है



मेरा ठुमक ठुमक चलना
तेरा दौड़-दौड़ आना
मां एक कौर के खातिर,  तेरा सौ सौ बहाना
मेरे तुतलाने पर मंद-मंद छुपके मुस्कुराने वाली माँ
लल्ला खातिर ईश्वर से भी बात लड़ाने वाली माँ
ना हाथों से छोड़त,  एक आह सुन पाती है

हे जग जननी देवी तूँ माँ कहलाती है


करुणा मई माता तेरे खातिर मर ना जाऊं तो निष्फल
मातृ भक्त के खातिर कुछ मैं कर न जाऊं तो निष्फल
ये माता कोई और नही ये अपनी भारत माता है
अपने लालों की चिंता में माता का जी घबराता है
ये फफक फफक कर रोती है जब आपस मे हम लड़ते है
क्यों अपने रक्त से सिंचित कर माता को आहत करते है
माता की गोदी में सबको आँधी भी न छू पायेगी
जब हृष्ट पुष्ट माता होगी आंचल से हमें बचाएगी
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अज्ञात अंतर्मन

अज्ञात अंतर्मन अज्ञात अंतर्मन

गगन का खालीपन,
शीतल सागर में खारापन

अज्ञात अंतर्मन अज्ञात अंतर्मन

तन्मयता उत्प्रेरित करके,
चेतनता प्रकाशित करके

कामोचित विषयो में, 
उत्फुल्लित करता पागल

अज्ञात अंतर्मन अज्ञात अंतर्मन

मेरे कर्मेन्द्रियों को कर्ता बनाकर कर्म करने को ,

आकर्षित तो करता है

अगले ही छण उन्ही इन्द्रियों को भोगो में लगाकर ,
प्रतिकर्षित भी करता है

विकट स्थिति बन गई यारो ,
काया है विकल

अज्ञात अंतर्मन अज्ञात अंतर्मन।

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