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बलिया का शेर : चित्तू पांडेय

भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में

चित्तू पांडे वह नाम है

जिसके नेतृत्व में बलिया भारत में

सबसे पहले आजाद हुआ था।

चित्तू पांडे शेरे बलिया के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस नाम को इतिहास भले ही उपयुक्त स्थान नही दिया लेकिन उनके द्वारा कोटि कोटि हृदयों में जलाई गई आज़ादी की अलख की लपटें आज भी ज़िंदा हैं। उनके व्यक्तित्व की महानता इस बात से ही लगाई जा सकती है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने जेल से छूटने के बाद कहा था कि मैं पहले बलिया की स्वाधीन धरती पर जाऊंगा और चित्तू पांडे से मिलूंगा।

कलेक्टर का आत्मसमर्पण

बात 19 अगस्त 1942 की है जब चित्तू पांडे ने आम जनमानस में क्रांतिकारी और भारत की आजादी की ऐसी अलख जगाई जिसके दबाव में आकर के बलिया जिले के कलेक्टर ने आत्मसमर्पण कर दिया। जनता का हुजूम इतना था की कलेक्टर को दबाव में आकर चित्तू पांडे को जेल से रिहा करना पड़ा।उनके साथ उनके साथियों को भी बरी कर दिया गया। 

राष्ट्रीय सरकार का गठन 

क्रांतिकारियों के हुजूम और जुनून को इस बात से ही आप समझ सकते हैं कि चित्तू पांडे की रिहाई के क्रियाकलाप में थोड़ी देरी हो गई तो लोगों ने जेल के फाटक तक दिए। इसके बाद क्रांतिकारियों ने कलेक्ट्री पर कब्जा कर लिया और चित्तू पांडे को वहां का जिलाधिकारी घोषित कर दिया। सारे सरकारी कर्मचारी पुलिस लाइन में बंद कर दिए गए और हनुमानगंज कोठी में राष्ट्रीय सरकार का मुख्यालय कायम किया गया। 

 अंग्रेजों का पलटवार 

यह सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई सरकार को अभी तीन ही दिन हुए थे कि 22 अगस्त को 2:30 बजे रात में रेलगाड़ी से अंग्रेजों की सेना की टुकड़ी बलिया पहुंची। नीदर रसूल ने मिस्टर वाकर को नया जिला अधिकारी नियुक्त किया।

23 अगस्त को नदी के रास्ते सेना की दूसरी टुकड़ी भी पटना से भी बलिया पहुंच गई। इसके बाद अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों के बहुत ही बर्बरता के साथ दमन कर दिया। आंदोलनकारियों को अदालत में पेश किया गया। उन्हें 20-20 बेंत और 7 साल की सजा सुनाई गई किसी को नंगा करके पीटा। किसी को हाथी के पांव में बांधकर घसीटा, कितनों के घरों को नष्ट कर दिया गया।  

वह आलम इतना भयावह था, रूह कांप जाती है। लेकिन उसके बाद भी आंदोलनकारियों के मन में बस एक ही आग जल रही थी देश की आजादी… गांव पर सामूहिक जुर्माना लगा दिया गया। चित्तू पांडे को भूमिगत होना पड़ा। आजादी चाहे 3 दिन की हो लेकिन भारतीय स्वतंत्रता की आजादी के आंदोलन के  इतिहास में चित्तू पांडे जी का नाम सदैव अमर रहेगा।

वह बलिया का शेर थे 

नेतृत्वकर्ता वाक्यपटु 

वीर धीर गंभीर थे 

आँखों में परतंत्रता से 

स्वतंत्र होने का सपना लिए 

लड़ पड़े अंग्रेजों से 

जान की परवाह बिना किए

अमर रहेगी वीरता 

अमर रहेगा त्याग 

देश सर्वदा करता रहेगा 

उन वीर सपूतों को याद 

‘गुमनाम शहीदों की गाथा ‘ लेखक अटल नारायण
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